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केंद्रीय कानूनों को बेअसर करने के लिए पंजाब ने पास किए चार एग्री बिल; क्या है इसके मायने https://ift.tt/35sT3PR

केंद्र सरकार के एग्रीकल्चर कानूनों का मुखर विरोध कर रहे पंजाब ने चार अपने विधेयक पारित किए हैं। केंद्रीय कानूनों के खिलाफ किसानों के एक महीने से चल रहे प्रदर्शन के बाद पंजाब विधानसभा ने विशेष सत्र बुलाकर 20 अक्टूबर को चार विधेयक पारित किए।

केंद्रीय कानूनों को बेअसर करने वाले इन कानूनों को पारित करने वाला पंजाब पहला राज्य बन गया है। कुछ और विपक्षी पार्टियों की सरकारों वाले राज्य भी इसे फॉलो कर सकते हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि इसकी जरूरत क्या थी? इससे क्या हो जाएगा? क्या कोई भी राज्य इस तरह केंद्रीय कानूनों को बेअसर कर सकता है?

सबसे पहले जानिए, क्या है पंजाब के विधेयक और नए कानून?

  • केंद्रीय कानून कहता है कि मंडियों के बाहर भी खरीद-फरोख्त हो सकती है। इस पर टैक्स नहीं लगेगा। पंजाब सरकार का विधेयक कहता है कि MSP से कम में खरीद-फरोख्त करने पर 3 साल की जेल और जुर्माना होगा। जीरो टैक्स भी मंजूर नहीं होगा।
  • केंद्रीय कानून कहता है कि किसान अपनी फसल को कहीं भी खरीद व बेच सकते हैं। उन पर कोई रोक नहीं रहेगी। पंजाब में इस पर रोक लगा दी है। किसान अपनी फसल वहीं बेच सकेंगे जहां राज्य सरकार बताएगी। खरीद की जानकारी राज्य सरकार को देनी होगी।
  • केंद्रीय कानून कहता है कि कंपनियां जितना मर्जी अनाज खरीद सकेंगी। भंडारण कहां किया? यह बताना नहीं पड़ेगा। पंजाब के बिल में देखरेख राज्य सरकार की होगी। सरकार को खरीद की लिमिट तय करने का अधिकार रहेगा।
  • केंद्रीय कानून कहता है कि यदि किसान और व्यापारी में कोई विवाद होता है तो एसडीएम उसकी सुनवाई करेगा और निराकरण करेगा। वहीं, पंजाब सरकार के फैसले के मुताबिक कंपनी से कोई विवाद होने पर किसान सिविल कोर्ट में भी जा सकते हैं।

इन विधेयकों की क्या जरूरत थी?

  • पंजाब सरकार का दावा है कि केंद्र के तीनों एग्रीकल्चर कानूनों को बदला गया है ताकि किसानों के संरक्षण के लिए पंजाब एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट्स एक्ट 1961 के तहत रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को लागू किया जा सके। इससे न केवल किसानों और खेत मजदूरों के हितों की रक्षा होगी बल्कि उनकी आजीविका भी कायम रहेगी।
  • तीनों विधेयकों में कहा गया है कि 2015-16 में किए गए एग्रीकल्चर सेंसस के मुताबिक राज्य के 86.2 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत है। उनके पास दो एकड़ से भी कम जमीन है। मल्टीपल मार्केट्स तक उनकी पहुंच सीमित है और उनके पास प्राइवेट मार्केट में अपना सामान बेचने के लिए नेगोसिएशन की ताकत भी नहीं है।

इन बिल्स का क्या मतलब है?

  • इन विधेयकों के जरिए केंद्र सरकार के कानूनों को बदला जा रहा है, इसलिए इन पर पंजाब के राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति की भी मंजूरी की आवश्यकता होगी। यदि मंजूरी नहीं मिली तो यह केंद्रीय कानूनों के खिलाफ पंजाब सरकार का महज एक राजनीतिक बयान होगा।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमला बोला है। उन्होंने ट्वीट किया कि क्या राज्य केंद्र के कानूनों को बदल सकता है? राजा साहब आपने जनता को बेवकूफ बनाया। किसानों को MSP चाहिए, आपके फर्जी और झूठे कानून नहीं।
  • केजरीवाल के आरोप पर अमरिंदर ने जवाब दिया- मैं आपके दोगले किरदार से हैरान हूं। आपके नेता राज्यपाल से भी मिलने साथ गए और अब बाहर कुछ और ही बोल रहे हैं। केजरीवाल को तो पंजाब को फॉलो करते हुए अपने यहां भी बिल पारित करने चाहिए।

पंजाब सरकार के विधेयकों पर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

  • कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि अब देश में व्यापक बहस होनी चाहिए कि केंद्र के कानून में क्या सुधार होना चाहिए। पंजाब सरकार का निर्णय किसानों की जरूरतों और स्थानीय आवश्यकता के तहत लिया गया है।
  • पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा केंद्रीय कानून में संशोधन का राज्य सरकार को अधिकार है, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है। इससे राज्य के बाहर के किसानों के पंजाब में फसल बेचने या व्यापारियों के बाहर जाने जैसी स्थिति निर्मित नहीं होगी।
  • सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (CRRID) के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ. सुचा सिंह गिल ने कहा कि सिर्फ दो फसलों (गेहूं-धान) को ही इन बिल्स में क्यों रखा है? वह सभी फसलें आनी चाहिए थी, जिनका MSP सरकारें तय करती हैं।
  • पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. एसएस जोहल का कहना है कि यह विधेयक सिर्फ वोटबैंक पॉलिटिक्स के लिए बनाए गए हैं। यह संशोधन राज्य में प्राइवेट कंपनियों की इंट्री को ब्लॉक करेंगे। यानी जो सुधार हो सकते थे, वह नहीं आ सकेंगे।

इसमें आगे क्या होगा? क्या कोई भी राज्य केंद्र के कानून को बदल सकता है?

  • यदि केंद्रीय कानून में कोई राज्य बदलाव करता है तो उस विधेयक को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। सबसे पहले तो राज्यपाल की मंजूरी लेनी होती है। राज्यपाल कानूनी राय-मशविरा करने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजता है।
  • राष्ट्रपति के लिए इस तरह के विधेयकों को मंजूरी देने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। संविधान के तहत वह चाहे तो इसे मंजूरी न दें या वह राज्य को फिर लौटा दें।
  • पंजाब सरकार की दलील है कि संविधान में समवर्ती सूची में कृषि राज्यों के हिस्से में है। केंद्र को इससे जुड़े मसलों पर कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। यदि राष्ट्रपति ने मंजूरी नहीं दी तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है।
  • इससे पहले नागरिकता कानून का भी कुछ राज्यों ने विरोध किया था। केरल सरकार ने तो उस कानून को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी थी। इसी तरह नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी एक्ट के कुछ प्रावधानों को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दी थी। इन पर फैसले नहीं आए हैं।


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