वैशाली, कीर्ति कुमारी और बसंती बेन ने बदली गांव की तकदीर; वहीं छवि, जबना चौहान, परवीन कौर पढ़-लिखकर बनीं सरपंच और गांवों में लाईं खुशहाली https://ift.tt/3504K0c
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आमतौर पर गांव की महिलाओं की जब बात होती है तो सिर पर पल्लू, बातों में झिझक और सीधी-सादी महिला की छवि हमारे दिमाग में होती है। लेकिन इसके उलट कुछ महिलाएं गांव में रहते हुए वहीं की अन्य महिलाओं का सहारा बन रही हैं।
यहां कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं, जो सरपंच बनीं। पढ़ाई-लिखाई में आगे ये महिलाएं शहर में रहकर भी अपना भविष्य बेहतर बना सकती थीं। लेकिन, उन्होंने अपनी मर्जी से गांव की तकदीर को संवारने का फैसला किया। आज सारी दुनिया में ये महिलाएं अपने गांव के साथ-साथ देश का नाम भी रोशन कर रही हैं। वर्ल्ड रूरल वीमेंस डे के मौके पर हमने गांव की ऐसी ही महिलाओं को सामने लाने की कोशिश की है।
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वैशाली ने गांव की महिलाओं को ऑर्गेनिक प्रोडक्ट बनाना सिखाया
25 वर्षीय वैशाली ने ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को रोजगार देकर और उनमें फैशन की समझ विकसित करके बेस्ट क्वालिटी के कपड़े और सामान के जरिये यूरोपियन एक्सपोर्ट मार्केट में जगह बनाई है। इस युवा आंत्रप्रेन्योर ने 'सुरमई बनाना एक्सट्रेक्शन प्रोजेक्ट लॉन्च' किया है। अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से वे ग्रामीण महिलाओं को ऑर्गेनिक और नैचुरल फाइबर प्रोडक्ट बनाना सिखाती हैं। वैशाली ने इस काम की शुरुआत गांव हरिहरपुर की 30 महिलाओं के साथ की थी।
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कीर्ति कुमारी 10 स्व-सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही हैं
कीर्ति उत्तराखंड के तेहरी गांव की कृषि विज्ञान केंद्र में फूड साइंटिस्ट हैं। कीर्ति ने इस गांव की महिलाओं को आयरन रिच रागी और बाजरे के लड्डू बनाना सिखाएं हैं। इन लड्डू को आंगनबाड़ी में काम करने वाली कार्यकर्ताओं के बीच बांटा जाता है। यहां की रागी बर्फी को गांव के कुपोषित बच्चों को दिया जा रहा है ताकि उनका विकास हो सके।
कीर्ति की मदद से जिस ब्लॉक लेवल प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत हुई है, फिलहाल उसका टर्नओवर 1 करोड़ है। फिलहाल कीर्ति के 10 स्व सहायता समूहों द्वारा बनाए गए फूड प्रोडक्ट पौष्टिक होने की वजह से इन्हें गर्भवती महिलाओं, बच्चों और टीनएज लड़कियों को दिया जाता है। गांव की महिलाएं इन चीजों को बेचकर अच्छी कीमत पा लेती हैं।
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बसंती बेन ने बाल विवाह के खिलाफ चलाया जागरूकता अभियान
अल्मोड़ा के कसौनी गांव में बसंती बेन एक टीचर हैं और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास कर रही हैं। बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने वाली बसंती बेन अब तक कई बच्चियों को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाएं भी उपलब्ध करा चुकी हैं। इससे पहले बसंती कोसी नदी के लिए ''वनरोपण अभियान'' भी चला चुकी हैं।
बसंती ने 200 महिलाओं का समूह तैयार किए और इन्हें ''महिला मंगल दल'' नाम दिया। उनके प्रयासों से यह क्षेत्र आज ओक और कफाल के पेड़ों से लहलहा रहा है। वे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके पानी बचाने के प्रति लोगाें को जागरूक कर रही हैं।
पढ़-लिखकर गांव की मिट्टी से जुड़ी 3 सरपंच की कहानी, जिन्होंने गांववासियों की परेशानी को समझा और उसका समाधान भी ढूंढा :
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अपने गांव सोंडा की छवि बदलती छवि राजावत
छवि राजावत टोंक जिले के छोटे से गांव सोड़ा की सरपंच हैं। वे भारत की सबसे कम उम्र की और पहली एमबीए पास सरपंच भी हैं। उन्होंने अपने गांव में वॉटर हार्वेस्टिंग कार्यक्रम चलाया है। वे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना के तहत चलाई जा रही सभी योजनाओं पर सक्रिय कदम उठाती हैं।
इस युवा सरपंच के दादा ब्रिगेडियर रघुबीर सिंह लगातार तीन बार सोडा से सरपंच चुने गए थे। उनकी इच्छा थी कि एक दिन छवि भी सरपंच बने। छवि को अपने गांव में पानी की व्यवस्था, सोलर पावर, पक्की सड़कें, टॉयलेट्स और बैंक बनवाने का श्रेय दिया जाता है। कोरोना काल के दौरान छवि ने ऑनलाइन फंड इकट्ठा करके 900 परिवारों का अस्तित्व बचाया है।
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हिमाचल प्रदेश में सबसे कम उम्र की सरपंच जबना चौहान
हिमाचल प्रदेश की जबना चौहान 22 साल की उम्र में मंडी जिले के अपने गांव थारजुन को संवारने में लगी हुई हैं। उन्होंने अपनी पंचायत में शराबबंदी लागू की। शराब पर पाबंदी लगाने का उनका अभियान दूसरी पंचायतों के लिए रोल मॉडल जैसा है।
हालांकि, अपनी इस पहल के लिए उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिली। लेकिन, वह अपने फैसले से पीछे नहीं हटीं। जबना ने थरजून पंचायत को स्वच्छ बनाने में बेहतर काम किया है। 24 वर्षीय जबना द्वारा किए गए कामों की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अक्षय कुमार ने भी की है।
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परवीन ने सुरक्षा के नजरिये से पूरे गांव में सीसीटीवी कैमरा लगवाया
परवीन कौर ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की। उसके बाद एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पैकेज की नौकरी का ऑफर मिलने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। इस युवा लड़की ने महज 21 साल की उम्र में हरियाणा की सबसे कम उम्र की सरपंच बनकर दिखाया।
उन्होंने सबसे पहले सड़कें ठीक कराईं, पानी की कमी दूर करने के लिए वाटर कूलर लगवाए। सुरक्षा के नजरिये से पूरे गांव में सीसीटीवी कैमरा और रोशनी के लिए सोलर लाइट का प्रबंध किया। सरपंच बनने के बाद परवीन अपनी उपलब्धि इस बात को मानती हैं कि आज उनकी वजह से गांव की लड़कियां कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित हुई हैं। वे भी समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं।
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