एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में काम बंद किया, जानिए क्या काम करती थी संस्था और सरकार कैसे विदेशी चंदों पर लगाम लगा रही https://ift.tt/2GhwtRE
मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में अपना काम बंद कर दिया है। संस्था का आरोप है कि भारत सरकार बदले के इरादे से उसके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। हालांकि, गृह मंत्रालय का कहना है कि एमनेस्टी अन्य संस्थाओं की तरह भारत में मानवतावादी काम करने के लिए स्वतंत्र है, पर भारतीय कानून विदेशी चंदों से चलने वाले संस्थानों को घरेलू राजनीतिक बहस में दखल देने की अनुमति नहीं देता है।
करीब 15 अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने भारत सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की है। एमनेस्टी इंडिया के पूर्व हेड आकार पटेल कहते हैं कि जहां तक मुझे मालूम है सरकार ने बिना किसी नोटिस के संस्था के बैंक खातों को फ्रीज किया है। कोर्ट का कोई आदेश भी नहीं था। मुझे लगता है कोर्ट जाने के बाद सरकार को प्रतिबंध हटाना होगा।
आकार बताते हैं कि मेरे कार्यकाल में भी 2018 में एक बार ऐसा हुआ था। हालांकि, हम लोग कोर्ट गए तो सरकार को प्रतिबंध हटाना पड़ा था। मैं 4 साल तक संस्था में रहा हूं, उस दौरान कई बार सीबीआई और ईडी ने कार्रवाइयां कीं। लेकिन, तब कर्मचारियों से कभी यह नहीं कहना पड़ा था कि हम तनख्वाह नहीं दे पाएंगे, इस बार ऐसा नहीं है। जब मैं था, तब संस्था में करीब 315 कर्मचारी काम करते थे।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के आरोप क्या हैं?
- एमनेस्टी का कहना है कि 10 सितंबर को उसे पता चला कि उसके सारे बैंक खातों को सरकार ने फ्रीज कर दिया है। इस वजह से संस्था को अपने सभी कर्मचारियों की नौकरियां खत्म करनी पड़ी है। इसके साथ ही सभी अभियान और शोध भी बंद करने पड़े हैं।
- भारत में एमनेस्टी के निदेशक अविनाश पांडेय का कहना है कि सरकार संस्था के पीछे इसलिए पड़ी है, क्योंकि वो लगातार सरकार के कामों में पारदर्शिता की मांग करती रही है। संस्था ने दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस की जवाबदेही स्थापित करने की भी मांग की थी।
विदेश से चंदा लेने पर संस्था का क्या कहना है?
- संस्था पर विदेश से चंदा लेने से संबंधित कानून एफसीआरए के उल्लंघन का आरोप है। ईडी ने सीबीआई की ओर से पिछले साल दर्ज एक एफआईआर के बाद अलग से जांच शुरू की थी।
- हालांकि एमनेस्टी का कहना है कि उसने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया है, बल्कि वो अपनी जरूरत की सारी रकम देश के अंदर से ही अलग-अलग स्रोतों से जुटाती आई है।
एमनेस्टी सरकार की आलोचना क्यों कर रही थी?
- एमनेस्टी इंडिया बार-बार ये कहते हुए केंद्र सरकार की आलोचना कर रही थी कि भारत में असंतोष का दमन किया जा रहा है। एमनेस्टी ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ था।
- इस साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के एक साल होने पर भी एमनेस्टी ने हिरासत में रखे गए सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को रिहा करने की मांग की थी। सामान्य इंटरनेट सेवा भी बहाल करने की मांग भी की थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल है क्या?
- एमनेस्टी इंटरनेशनल की स्थापना 1961 में लंदन में गलत आरोपों पर जेलों में सजा काट रहे कैदियों की रिहाई के लिए एक अभियान के तहत हुई थी। 1977 में संस्था को नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला। एमनेस्टी इंटरनेशनल करीब 150 देशों में काम करती है। भारत में संस्था के पहले निदेशक पूर्व रक्षा मंत्री जॉज फर्नांडीज थे।
- भारत में इससे पहले भी एमनेस्टी को कई बार अपने कामकाज को बंद करना पड़ा है। भारत में एमनेस्टी के पूर्व निदेशक आकार पटेल का कहना है कि ऐसा चार-पांच दफा हो चुका है, जब देश में संस्था को कुछ समय के लिए कामकाज बंद करना पड़ा है।
किसी और संस्था के खिलाफ भी कार्रवाई हुई है?
- 2018 में पर्यावरण को लेकर काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस के खिलाफ भी ईडी ने जांच शुरू की थी। ग्रीनपीस को मजबूरन अपने कई कर्मचारियों की नौकरियों से निकालना पड़ा था। बाद में अपने काम को भी सीमित करना पड़ा।
विदेशी फंडिंग रोकने की मोदी सरकार ने क्या कोशिश की है?
- हाल ही में राज्यसभा में फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020 यानी FCRA बिल को पास किया गया है। नए बिल में अब गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के प्रशासनिक कार्यों में 50% विदेशी फंड की जगह बस 20 फीसदी फंड ही इस्तेमाल हो सकेगा। यानी अब इसमें 30% की कटौती कर दी गई है।
- अब एक एनजीओ मिलने वाले ग्रांट को अन्य एनजीओ से शेयर भी नहीं कर सकेगी। इसके साथ ही एनजीओ को मिलने वाले विदेशी फंड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, नई दिल्ली की ब्रांच में ही रिसीव किए जा सकेंगे।
- केंद्र सरकार का कहना है कि हमने इस बिल को इसलिए पेश किया है, ताकि विदेशों से मिलने वाले फंड को रेगुलेट किया जा सके। ये फंड किसी भी सूरत में देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल ना हों सके।
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