यहां 9 दिनों तक राजा का दरबार लगता है, 10वें दिन 750 किलो सोने के सिंहासन पर चामुंडेश्वरी देवी का जुलूस निकलता है https://ift.tt/35uvVR4
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दशहरा को कर्नाटक में स्टेट फेस्टिवल का दर्जा दिया गया है। यहां पर एक दिन नहीं, बल्कि 10 दिन तक दशहरा मनाया जाता है। इस दौरान सबसे खास होती है जम्बो सवारी और टॉर्च लाइट परेड। इसमें 21 तोपों की सलामी के साथ महल से हाथियों का जुलूस निकाला जाता है। इसमें एक ऐसा हाथी भी शामिल होता है, जिसे खास तरह से सजाया जाता है। इस हाथी पर 750 किलो सोने का एक सिंहासन रखा जाता है। इस पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा रखी जाती है।
हर साल 750 किलो के सोने के सिंहासन पर मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा को लेकर हाथियों का काफिला मैसूरु के शाही राज महल से शहर में निकलता है, तो इसे देखने के लिए लाखों की भीड़ जमा होती है। अलग-अलग जिलों की झांकियां निकाली जाती है, लोक-कलाकार शोभा यात्रा में शामिल होते हैं।
इस बार कोरोना के चलते मां चामुंडेश्वरी की सवारी तो निकलेगी, लेकिन सिर्फ 300 लोग ही शामिल होंगे। इसके पहले करीब 10 लाख लोग शामिल होते थे। साथ ही इस बार कोई भी झांकी नहीं होगी और न ही लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते दिखेंगे।
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मैसूरु में आज भी लगता है राजा का दरबार
मान्यता है कि मैसूरु दशहरे की शुरुआत 15 वीं शताब्दी में विजयनगर के शासकों ने की थी। लेकिन, इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पता चलता है कि दशहरा उत्सव को भव्यता वाडयार शासनकाल में दी गई थी। वाडयार राजाओं ने तकरीबन 150 साल तक कर्नाटक पर राज किया था और मैसूरु को अपनी राजधानी बनाया, इसी दौरान मैसूरु दशहरा उत्सव को राजकीय उत्सव के रूप में मनाने का फैसला किया गया। आजादी के बाद भी राज्य सरकार ने इसे राजकीय उत्सव के रूप में मनाने जाने का क्रम जारी रखा।
नवरात्र में यहां राजा का खास दरबार लगाया जाता है। मैसूरु के वर्तमान महाराज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार सोने के सिंहासन पर बैठते हैं। पिछले साल तक कुछ खास लोगों को ये दरबार देखने का मौका मिलता था, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के चलते इसकी भव्यता को भी कम कर दिया गया है। किसी भी बाहरी व्यक्ति के दरबार देखने पर पाबंदी लगा दी गई है।
कर्नाटक निजी टैक्सी असोसिएशन के महासचिव राधाकृष्ण होल्ला कहते हैं कि हर साल मैसूरु दशहरे के दौरान हमारे पास टैक्सी कम पड़ जाती थीं, लेकिन इस बार 5 फीसदी बुकिंग भी नहीं आई है। मैसूरु होटल ओनर्स असोसिएशन के अध्यक्ष सी नारायण गौड़ा का कहना है कि राज्य सरकार ने अनलॉक के दौरान पर्यटक स्थलों को खोलने का फैसला किया, तो उन्हें लगा कि कोरोना के चलते बीते 6 महीनों में जो नुकसान हुआ है कम से कम दशहरे के वक्त उसकी भरपाई कर ली जायेगी। लेकिन सरकार की तरफ से जो पाबंदियां लगाई गयीं हैं, उसने होटल मालिकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। पहले से ही शहर में 100 से ज्यादा होटल, लॉज और रेस्टोरेंट्स बंद हो चुके हैं।
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राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए 17 अक्टूबर से 1 नवंबर तक मैसूरु के आसपास के सभी पर्यटक स्थलों को बंद रखने का फैसला किया था, लेकिन टूर गाइड्स और होटल एसोसिएशन ने सीएम से मिलकर गुहार लगाई। जिसके बाद इस फैसले को रद्द कर दिया गया। नारायण गौड़ा के मुताबिक, दशहरा ही वो वक्त है जब होटल व्यापारी कमाई करते हैं, पूरे महीने की बुकिंग उन्हें मिलती है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते सबकुछ चौपट हो गया है।
स्थानीय लोगों की मानें, तो ये पहली बार है जब दशहरा इतना फीका लग रहा है। मैसूरु में फोटो स्टूडियो चलाने वाले महेश कहते हैं कि पहली बार दशहरे के वक्त इतनी कम भीड़ देखने को मिल रही है, उत्सव से जुड़े सारे सांस्कृतिक कार्यक्रमों को या तो सीमित कर दिया गया है या फिर रद्द ही कर दिया गया है। सरकार मुख्य कार्यक्रम जम्बो सवारी का सीधा प्रसारण दिखाने की बात तो कह रही है, लेकिन दशहरा ऐसा पर्व नहीं है, जिसे ऑनलाइन देखा जा सके।
शाही महल की सजावट
इस दौरान मैसूरु के महल में होने वाले कार्यक्रम सबसे खास होते हैं। महल की सजावट भी देखने लायक होती है। महल को हजारों बल्ब से सजाया जाता है। दिलचस्प बात ये है कि इस तरह का बल्ब बनाने वाली कम्पनी मैसूर बल्ब्स अपना कारोबार बंद कर चुकी है, लेकिन सिर्फ मैसूरु राजमहल के लिए अभी भी ये कम्पनी बल्ब बनाती है। महल की रौनक को देखने लोग दूर-दूर से दशहरे के दौरान मैसूरु आते हैं।
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साल भर में दशहरे के दौरान ही महल का एक हिस्सा आम जनता के लिए खोला जाता है। शहर में जगह-जगह हरिकाथे, कमसले पाडा, गमका, यक्षगाना और कठपुतलियों का प्रदर्शन प्रमुख होता है। वहीं रंगयाना में 9 दिनों के नाटक का आयोजन किया जाता है।
सीएम करेंगे जम्बो सवारी की शुरुआत
26 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन जम्बो सवारी का मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से 2 बजकर 52 मिनट पर है। परम्परा के मुताबिक, राज्य के मुख्यमंत्री पहले राजमहल में नंदी द्वार की पूजा करेंगे। इसके बाद मैसूरु के महाराज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार के साथ मिलकर हाथी की पीठ पर सोने के सिंहासन में सजी मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा की पूजा कर जम्बो सवारी का आगाज करेंगे।
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