फिल्म के लेखक जयदीप साहनी बोले- इस फिल्म ने महिला एथलीट जगत और शेष भारत के बीच एक पुल का काम किया https://ift.tt/3ksVF70
शाहरुख खान स्टारर फिल्म 'चक दे इंडिया' को रिलीज हुए आज 13 साल हो गए हैं। यह फिल्म 10 जुलाई 2007 में रिलीज हुई थी। इस मौके पर फिल्म के लेखक और स्क्रीनप्ले राइटर जयदीप साहनी ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपना अनुभव शेयर किया। उन्होंने बताया कि यह फिल्म इसलिए खूबसूरत बन पाई, क्योंकि निर्माता आदित्य चोपड़ा और निर्देशक शिमित अमीन ने मुझे पूरी रचनात्मक आजादी दी थी।
जयदीप के मुताबिक इसका आगाज ‘बंटी और बबली’ के बाद हुआ था। उस फिल्म की सफलता से आदि बहुत खुश थे। उन्होंने पूछा था कि अगली फिल्म किस तरह की बनाना चाहोगे तो मैंने कहा कि 'एक ऐसी फिल्म, जो महिला एथलीट बिरादरी और बाकी हिंदुस्तान के बीच पुल बन सके।'
आदि बोले- सही ढंग से पेश करना होगा
'आदि भी समझ गए कि एथलीट जगत से अधिकतर भारतीयों का वास्ता न होना शर्म की बात है। आदि ने यह भी कहा कि अगर हम चीजों को सही ढंग से पेश कर पाए तो वाकई एक बेहतरीन फिल्म बनेगी। फिर डायरेक्टर शिमित अमीन के साथ मिलकर फिल्म की खास आवाज और विजन को सामने लाने में जुटे।'
आदि और शिमित ने जताया भरोसा
'आदि ने रामू की ‘अब तक छप्पन’ देखने के बाद तय किया था कि शिमित को इस फिल्म का डायरेक्टर होना चाहिए। उस शुरुआती स्टेज पर बतौर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर आदि व शिमित ने फिल्म में जो यकीन जाहिर किया था, वह मेरे लिए बड़ा आश्वस्त करने सरीखा था।'
इंडस्ट्री में पूरे हो रहे 20 साल
'मजे की बात यह है कि मेरी फिल्म को जहां 13 साल हो रहे हैं। वहीं मुझे इंडस्ट्री में 20 साल हो रहे हैं। साल 2000 में मैंने राम गोपाल वर्मा की ‘जंगल’ से बतौर राइटर डेब्यू किया था। यशराज से साल 2005 में नाता जुड़ा। तब से लेकर अब तक उनके लिए काम कर रहा हूं।'
मुझे डीटीपी ऑपरेटर समझ लिया था
'जंगल' से जुड़ा एक किस्सा बताते हुए जयदीप ने कहा, 'उस फिल्म पर मुझे दो महीने तक रोजाना देखने के बाद भी मेरी पहली फिल्म के सेट पर किसी ने मुझे डीटीपी ऑपरेटर समझ लिया था, क्योंकि तब मैं कम्प्यूटर पर काम किया करता था। बहरहाल, राइटिंग को उस भूले-बिसरे कोने से लेकर अब के जमाने में किसी भी फिल्म के फोर फ्रंट पर आना बड़ा सुखद है। लेखक बिरादरी के लिए यह बड़े संतोष का विषय है।'
विभिन्न जॉनर की फिल्में लिखने में परम आनंद मिलता है
जयदीप बताते हैं- 'मुख्तलिफ माहौल में रची-बसी भिन्न सुर-तालों, बोलियों और गंवारू भाषाओं वाली अलग-अलग जॉनर की फिल्में इमेजिन करने और उन्हें लिखने में मुझे परम आनंद मिला है। इनमें से कई किरदारों, संवादों या गानों के टुकड़ों का लोगों की आम बातचीत में शामिल हो जाना एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे पाना मेरा लक्ष्य नहीं था, लेकिन बिना चौंके इसका आनंद उठाना आखिरकार मैंने सीख लिया है।'
आगे उन्होंने कहा, 'हालांकि मैं इस बात को लेकर हमेशा सचेत रहता हूं कि ऐसा इस माध्यम की पहुंच के कारण भी होता है, इसीलिए हमें इस अनाड़ी ताकत को किसी अच्छे काम में इस्तेमाल करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहिए, ताकि भरोसे के कुछ पुल कायम हो सकें या संभवतः कोई सार्थक चर्चा ही शुरू हो जाए।'
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
कोई टिप्पणी नहीं