‘गुंजन सक्सेना’ बायोपिक नहीं एक मनगढ़ंत कहानी है; क्योंकि करगिल जाने वाली पहली फीमेल पायलट श्रीविद्या राजन थीं https://ift.tt/2FwmabG
जब मैंने सुना था कि ‘गुंजन सक्सेना’ के जीवन पर फिल्म बन रही है तो सोचा, चलो इस फिल्म के जरिए लोगों को भारतीय वायुसेना में बारे में कुछ अच्छा जानने को मिलेगा। लेकिन, जब यह फिल्म आई और मैंने इस फिल्म को देखा तो समझ में आ गया कि किसी एक की फेक इमेज बनाने के लिए एयरफोर्स की इमेज के साथ खिलवाड़ किया गया है।
बतौर फिल्म मेकर्स आप सिनेमैटिक लिबर्टी, क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर झूठ नहीं दिखा सकते हैं। धर्मा प्रोडक्शन को अपनी क्रिएटिव फ्रीडम ‘कभी खुशी-कभी गम’ जैसी फिल्मों में ही दिखानी चाहिए। मैं खुद एक हेलिकॉप्टर पायलट रही हूं, मैं 15 सालों तक एयरफोर्स में रही, लेकिन ऐसे किसी दुर्व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा, जैसा फिल्म में दिखाया गया है। मेल ऑफिसर ज्यादा प्रोफेशनल और जेंटलमैन होते हैं। इंडियन एयरफोर्स से रिटायर्ड विंग कमांडर नम्रता चांदी ने हाल ही में आई फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’ में दिखाई गई एयरफोर्स की इमेज को लेकर यह बात कही।
भास्कर से बातचीत में नम्रता ने बताया कि उनकी ट्रेनिंग साल 1995 में हकीमपेट और दुन्दिगल में हुई थी। उस दौरान 6 लड़कियों का बैच था, जिसमें नम्रता के अलावा उनकी छोटी बहन सुप्रीत चांदी, गुंजन सक्सेना, अनुराधा नायर, सरिता सिरोही और श्री विद्या राजन थीं। यह एयरफोर्स में महिला हेलिकॉप्टर पायलट का चौथा बैच था। एयरफोर्स में महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिले हैं। मुझे और मेरी हर बैचमेट को सीओ से लेकर हर ऑफिसर और मेल कलीग्स का सपोर्ट मिला। हमें कभी किसी ने इसलिए नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की क्योंकि हम फीमेल हैं।
यह फिल्म बायोपिक नहीं, मनगढ़ंत कहानी है
नम्रता बताती हैं कि फिल्म में जिस तरह से एयरफोर्स की नेगेटिव इमेज और महिला पायलटों के साथ पुरुष साथियों का व्यवहार दिखाया गया है, उसे देखकर कोई भी लड़की एयरफोर्स ज्वाइन नहीं करना चाहेगी। मैं खुद भी इस फिल्म को देखने के बाद कभी एयरफोर्स ज्वाइन करने के बारे में सोचती तक नहीं।
नम्रता बताती हैं कि करगिल में फ्लाई करने वाली पहली महिला पायलट श्री विद्या राजन थीं, जबकि फिल्म में दिखाया गया है कि वो पायलट गुंजन थी। इस फिल्म के जरिए ऑर्म्ड फोर्स का मोरल डाउन किया गया है। यह फिल्म बायोपिक नहीं, बल्कि एक मनगढ़ंत कहानी है। इस कहानी में गुंजन को एक विक्टिम के तौर पर दिखाया है। गुंजन के साथ उस यूनिट में दो और लेडी पायलट भी पोस्टेड थीं, लेकिन फिल्म में उनका जिक्र तक नहीं किया गया।
नम्रता बताती हैं कि मैं हैरान हूं कि इस फिल्म में दिखाया गया है कि गुंजन सक्सेना को शौर्य चक्र मिला था, जोकि पूरी तरह से गलत है। ये ऐसे तथ्य हैं, जिसका खुद गुंजन ने भी खंडन नहीं किया। यह तथ्य दिखाकर मेकर्स ने वास्तविक शौर्य चक्र विजेताओं की बहादुरी और निष्ठा को धूमिल किया है।
वो कहती हैं कि मुझे यह तो नहीं पता कि गुंजन ने फिल्म के रिसर्चर और क्रू को अपने अनुभवों के बारे में क्या बताया होगा, लेकिन मैं बात को पूरे दावे से कह सकती हूं कि कोई भी ऐसा शख्स जिसने एयरफोर्स की यूनिफॉर्म पहनी हो वो कभी भी एयरफोर्स की ऐसी इमेज बयां नहीं करेगा, जिससे समाज में उसकी नेगेटिव इमेज बने। गुंजन ने भी ऐसा नहीं किया होगा।
नम्रता 2011 में रिटायर्ड हुई थीं, उन्होंने अपने करियर में 2000 घंटे की फ्लाइंग की है।
ट्रेनिंग के दौरान हम दोनों बहनों ने एक साथ फ्लाई किया था, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है
नम्रता बताती हैं कि उनका शुरुआती जीवन उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में बीता। हमारे फर्स्ट कजिन फाइटर पायलट थे, वो बचपन में अक्सर हमें प्लेन की कहानियां सुनाया करते थे। उनकी वजह से ही मैंने एयरफोर्स में जाने का निर्णय लिया।
नम्रता बताती हैं, जब चंडीगढ़ में पोस्ट ग्रेजुएशन के आखिरी 6 महीने बचे थे तो मैंने अखबार में विज्ञापन देखा, जो महिला हेलिकॉप्टर पायलट के लिए था। उसी दौरान मेरी बहन ने भी अप्लाई कर दिया। हमने 1994 में अप्लाई किया था। हमने एग्जाम, इंटरव्यू क्रेक किया और साल 1995 में हमारी ट्रेनिंग हुई। ट्रेनिंग के दौरान एक बार ऐसा मोमेंट भी आया जब हम दोनों बहनों ने एक साथ फ्लाई किया। बाद में लोगों ने बताया कि यह तो वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया, क्योंकि आज तक दो बहनों ने एक साथ फ्लाई नहीं किया था।
शुरुआती दौर में कॉमन वॉशरूम, चेंजिंग रूम के चलते प्रॉब्लम्स होती थी
नम्रता बताती हैं, उनकी पहली पोस्टिंग जैसलमेर में हुई। इस दौरान उन्हें कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा। उस वक्त वहां फीमेल वॉशरूम नहीं हुआ करते थे। ऐसे में उन्हें मेल वॉशरूम ही इस्तेमाल करने होते थे।
नम्रता ने बताया कि ऐसी स्थिति में वो किसी को बुलाकर पहले चेक कराती थीं कि कोई वॉशरूम में है तो नहीं। इसके बाद किसी को बाहर खड़ा करके वॉशरूम यूज किया करती थीं। बाद में यह सब सामान्य प्रक्रिया बन गई।
पुरानी बातें याद करते हुए नम्रता बताती हैं कि चेंजिंग रूम में जाते वक्त वो वहां मौजूद लोगों को बाहर खड़ा करके ड्रेस चेंज कर लेती थीं। नम्रता कहती हैं, यह समस्या सिर्फ शुरुआती दौर में थी, लेकिन यह इतनी बड़ी समस्या भी नहीं थी कि जिसको इश्यू बनाया जाए। हम एयरफोर्स में सुविधा के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए सर्व करने आते हैं।
मेरा मानना है कि अगर लाइफ में चैलेंजेस नहीं हैं तो खुद के लिए चैलेंजेस बनाओ
साल 1996 में नम्रता की पहली पोस्टिंग जैसलमेर में हुई। नम्रता बताती हैं कि उन्हें डेजर्ट कभी पसंद नहीं था, लेकिन जब मैं वहां गई और मैंने जैसलमेर को आसमान से देखा तो मुझे इस शहर से प्यार हो गया। यहां मैं भारत-पाक बॉर्डर पर रेकी और रेस्क्यू करती थी। इसके बाद यूपी के सरसावां में पोस्टिंग हुई।
साल 2000 में मैंने रिक्वेस्ट किया कि मुझे लेह जाना है, क्योंकि जो पायलट सियाचिन जैसी विषम परिस्थितियों में फ्लाई करते हैं, वो बेस्ट पायलट माने जाते हैं। मुझे चैलेंजिंग फ्लाइंग करनी थी, आखिरकार मुझे मौका मिला और मैं सियाचिन में फ्लाइंग करने वाली पहली फीमेल पायलट भी बनी। मेरा मानना है कि अगर लाइफ में चैलेंजेस नहीं हैं तो खुद के लिए चैलेंजेस बनाओ। यहां मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ सीखा।
मैच बॉक्स हेलीपैड पर लैंडिंग करना आसान नहीं होता
नम्रता बताती हैं कि उन्होंने सियाचिन में कई लाइफ सेविंग रेस्क्यू किए, इनमें सैनिक और सिविल रेस्क्यू भी थे। एक बार सर्दी के मौसम में माइनस टेम्परेचर में हम एक बुजुर्ग को उसके गांव से लेने गए। उस गांव में दो घर थे जो पूरी तरह बर्फ से ढके थे, यहां हमने बड़ी मुश्किल से लैंड किया। सियाचिन के दौरान हमेशा कम स्पेस पर लैंडिंग करनी होनी थी। यहां मैच बॉक्स हेलीपैड होते थे।
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