पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाने की जरूरत है, बच्चों के साथ डिक्टेटर बनेंगे तो नुकसान ही होगापेरेंटिंग https://ift.tt/2DM8E3j
स्वतंत्रता दिवस पर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने दैनिक भास्कर के पाठकों के लिए विशेष लेख लिखा है। पढ़ें, उन्हीं के शब्दों में...
‘‘मेरे बचपन की एक बड़ी सुखद याद उस पल की है, जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी पर कोई फिल्म देख रहा है और ऐसे में जब कोई ऐसा सीन आए, जिसमें हिंसा हो या बड़ा तकलीफदेह हो, तो मां अपने हाथों से मेरी आंखें बंद कर दिया करती थीं। जाहिर है, उनके रोकने से मेरी देखने की उत्सुकता और बढ़ जाती। लेकिन, बड़ी जद्दोजहद के बाद भी मैं उनके हाथों को अपनी आंखों से हटा नहीं पाता था। कितना प्राकृतिक है माता-पिता का बच्चे को तकलीफों से बचाना। ऐसा लगता है कि यह व्यवहार माता-पिता के दिमाग में कोड कर दिया गया है।
विज्ञान ने आज साबित कर दिया है कि बच्चे ने जैसा बचपन बिताया होगा, उसका असर उसके विकास और व्यक्तित्व पर पड़ता ही है। खासतौर पर जीवन के पहले 6 साल बड़े महत्वपूर्ण हैं, जब दिमाग का विकास बहुत तेजी से होता है। यह वही समय है, जो निर्धारित कर देता है कि बच्चा आगे चलकर कितना स्वस्थ और सुखी होगा। नए प्रमाण तो ऐसे भी हैं, जो बताते हैं कि बचपन में नकारात्मक भावनाओं का अनुभव बच्चों के भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। ऐसे अनिश्चितता और भय के माहौल में जब प्री-स्कूल और स्कूल बंद हैं, परिवार अपने घरों में कैद हैं, आवाजाही पर पाबंदियां हैं, नौकरी जाने और आय में कमी की खबरें हैं, वहीं घर से बैठकर काम करने में स्ट्रेस (तनाव) बढ़ गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि माता-पिता काफी तनाव में होंगे।
लेकिन ऐसे ही समय में पैरेंट्स को इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार रहना होगा और किसी भी हालत में अपने तनाव और नकारात्मक भावनाओं को अपने बच्चों तक पहुंचने से रोकना होगा। आज की परिस्थिति में यह बहुत जरूरी है कि पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाई जाए।
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम सकारात्मक विचार और व्यवहार से ऐसा माहौल तैयार करें जिससे कि हम अपने बच्चों को उंगली पकड़कर इस महामारी जैसी गंभीर चुनौती से लड़ते हुए बाहर लेकर आ सकें। इससे आगे जाकर उनकी मानसिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकेगी।
यह महामारी एक अवसर है, जब हम अपने बच्चों के साथ एक बॉन्ड बना सकें ताकि हम एक-दूसरे को सपोर्ट कर सकें। ऐसे में डिक्टेटर होने की प्रवृत्ति हमारे बच्चों के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं है। हमें अपने बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए। उन्हें इतना स्पेस देने की जरूरत है, जिसमें वे खुलकर अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त कर सकें।
अगर कोई बच्चा जिद कर रहा है या बुरा बर्ताव कर रहा है तो गुस्से से उसका जवाब देने से पहले हमें थोड़ा रुककर एक पल सोचना चाहिए। क्योंकि शायद बच्चे का यह तरीका उसके डर, तनाव और चिंता को जाहिर कर रहा हो, जिसे वह और किसी तरीके से व्यक्त करने में अक्षम हो। किसी भी सूरत में हमें शाब्दिक या शारीरिक सजा देने से बचना चाहिए।
बच्चे कोविड-19 को लेकर कई प्रश्न पूछेंगे और हमें उस स्तर पर जवाब देना होगा, जिसे वे समझ सकें। अगर वे प्रश्न न भी पूछें, तो भी हमें इस परिस्थिति के बारे में उन्हें समझाना चाहिए। अगर एक ही प्रश्न बार-बार पूछें, तो आपको समझना चाहिए कि वे सांत्वना और विश्वास चाहते हैं, इसलिए आपके लिए संयम बरतना जरूरी है।
अगर आपको उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं पता है, तो उसे ढूंढ़ने की कोशिश करें। लाखों-लाख परिवार हैं, जो एक जैसी चिंताओं से जूझ रहे हैं इसलिए ये और भी जरूरी है कि आप अपने बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ आप अपना ख्याल भी रखें क्योंकि आपकी भावनात्मक स्थिरता आपके बच्चे के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपहार हो सकता है।
बच्चों को धैर्य से सुनना, एक प्यार भरी थपकी, एक खुशनुमा झप्पी और प्यार से चूमने जैसा दुलार आपके बच्चे को मजबूत और दयालु व्यक्ति बनाने में मददगार साबित होगा। इससे वह आपको समझ सकेगा और आगे भी किसी को सहारा दे पाएगा। हमारे छोटे-छोटे बच्चे मां-पापा या परिवार के अन्य सदस्यों से इसी तरीके के आश्वासन की आशा रखते हैं।
इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बाहर की दुनिया में कितनी उथल-पुथल है, बच्चों के लिए तो उनके माता-पिता ही उनके हीरो हैं। इसलिए हम पगड़ी या मुकुट पहनते हों या नहीं, हमें हर रोज, हर समय अपने बच्चों को ये विश्वास दिलाने की जरूरत है कि उनके लिए हम हैं...।”
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