सचिन पायलट यदि कांग्रेस में टिके रहे तो भी राजस्थान-कांग्रेस में उनका साधारण कार्यकर्ता भी बने रहना उचित नहीं, वे केंद्रीय कांग्रेस में जगह तलाशें https://ift.tt/3hm89uL
राजस्थान उच्च न्यायालय ने सचिन-गुट की बगावत पर फैसले को 24 जुलाई तक के लिए टाल दिया है। विधानसभा अध्यक्ष शायद अदालत की राय का सम्मान करेंगे और बागी विधायकों को नोटिस का जवाब देने को मजबूर नहीं करेंगे। हो सकता कि इन तीन-चार दिनों में राजस्थान कांग्रेस के दोनों धड़ों में सद्भाव पैदा करने की कोशिशें भी हों।
लेकिन अब इन कोशिशों का महत्व क्या रह गया है? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिल का दर्द जितने तेजाबी शब्दों में व्यक्त किया है, उसके बाद सचिन-गुट का कांग्रेस में बने रहना जीते जी मर जाने के बराबर है। अपने पार्टी अध्यक्ष, अपने उप-मुख्यमंत्री के लिए आज तक क्या किसी नेता ने ‘निकम्मा’ और ‘नाकारा’ शब्द का प्रयोग किया है? क्यों किया है?
क्योंकि क्या आज तक किसी पार्टी के अध्यक्ष ने अपनी ही सरकार गिराने की कोशिश की है? सचिन-गुट का यह दावा कितना हास्यास्पद है कि वे लोग सिर्फ मुख्यमंत्री को हटाना चाहते थे। ऐसा कहकर सचिन-गुट स्वीकार रहा है कि उसकी सारी लड़ाई सिर्फ एक काम के लिए है। वह है, सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना।
इस बगावत का यही लक्ष्य है तो फिर बिना किसी ठोस तैयारी के यह कदम उठा लेना क्या सिद्ध करता है? क्या यह नहीं कि यह कदम बचकाना था। आत्मघाती था। सिर्फ 19 विधायकों को साथ लेकर आप 100 से अधिक विधायकों की सरकार कैसे उलट सकते हैं? आपके पास न पर्याप्त विधायक हैं और न ही कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व आपके साथ है।
इसके अलावा राजस्थान की जनता में अशोक गहलोत की व्यक्तिगत छवि भी ऊंची है और उनकी सरकार को कोरोना-संकट के दौरान काफी सराहना भी मिली है।यदि कांग्रेस-सरकार की इस अवधि में सचिन पायलट को उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस-प्रधान के तौर पर काम नहीं करने दिया जा रहा था तो सचिन ने अपने नेतृत्व के सद्गुणों का प्रदर्शन क्यों नहीं किया?
यदि सचिन खुद को राजस्थान में कांग्रेस की विजय का श्रेय देते हैं और खुद को मुख्यमंत्री का पात्र मानते हैं तो उन्होंने अपनी नेतागीरी के चमत्कारी गुणों का प्रदर्शन क्यों नहीं किया? कोरोना-संकट ने तो उन्हें दुर्लभ अवसर प्रदान किया था। वे कुछ ऐसी जनसेवा कर सकते थे कि राजस्थानियों ही नहीं, सारे भारतीयों के दिल में उनकी जगह बन जाती।
मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हें अपनी छवि खराब नहीं करवानी पड़ती। अगली अवधि में मुख्यमंत्री पद खुद हाथ जोड़े हुए उनकी सेवा में खड़ा होता। अब सचिन लाख दावा करें कि उनका गुट भाजपा से हाथ नहीं मिला रहा है लेकिन इसपर कौन भरोसा कर रहा है? भाजपा की केंद्र सरकार और राजस्थान के भाजपा नेताओं ने इस दावे के पोल खोल दी है।
केंद्र सरकार के संगठन अशोक गहलोत के रिश्तेदारों और अफसरों पर इसी वक्त छापे क्यों मार रहे हैं? हो सकता है कि वे कानून का उल्लंघन करते हुए पकड़े जाएं, जैसा कि सभी नेताओं के रिश्तेदारों और अफसरों के साथ होता है लेकिन केंद्र सरकार की यह कार्रवाई उसकी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच ला रही है। लेकिन राजस्थान सरकार भी कम नहीं है। वह सचिन पायलट के साथ वही व्यवहार कर रही है, जो गहलोत के साथ केंद्र सरकार कर रही है।
यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कितना शर्मनाक है कि विधायकों को करोड़ों रु. की रिश्वतें देकर उनसे दल-बदल करवाने की कोशिश हो रही है? केंद्र के एक भाजपा मंत्री के टेप भी इस संबंध में जारी हो चुके हैं। टेप करनेवालों पर मुकदमा चलाकर उन्हें सजा देने की मांग की जा रही है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को इस तरह गिराने से बड़ा भ्रष्टाचार क्या है? इस भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ करनेवाले को दंडित नहीं, पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
राजस्थान के घटनाक्रम ने सिद्ध कर दिया है कि जो लोग जनता के नेता होने का दावा करते हैं, वे अपना ईमान बेचने में जरा संकोच नहीं करते। उन्हें होटलों में रेवड़ों की तरह कैद रखना पड़ता है। दल-बदल विरोधी कानून 1985 में इसी मर्ज के इलाज के लिए बना था। लेकिन हमारे चालाक नेताओं ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है।
वे पहले सामूहिक इस्तीफा देते हैं और थोड़े दिन बाद वे चुनाव लड़कर फिर संसद और विधानसभा पहुंच जाते हैं। अब कानून में ऐसा संशोधन हो कि दल बदलने वाले नेता को अगले पांच साल तक न तो चुनाव लड़ने दिया जाए और न ही कोई सरकारी पद दिया जाए।
पता नहीं राजस्थान हाईकोर्ट सचिन-गुट पर दल-बदल विरोधी कानून थोपेगा या नहीं लेकिन यह तय है कि सचिन पायलट यदि कांग्रेस में टिके रहे तो भी राजस्थान-कांग्रेस में उनका साधारण कार्यकर्ता भी बने रहना उचित नहीं है। इतनी बेइज्जती के बावजूद वे कांग्रेस में टिके रहना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि वे केंद्रीय कांग्रेस में कोई जगह तलाशें।
यदि अब भी सचिन-गुट को दल-बदलू करार नहीं दिया जाता तो क्या वे विधानसभा में गहलोत सरकार के पक्ष में हाथ उठाएंगे? यदि नहीं तो उन्हें विधानसभा से भी हाथ धोना पड़ेगा। यदि भाजपा सचिन को कांग्रेस में बनाए रखकर बाद में भी गहलोत-सरकार गिराने की कोशिश करेगी तो उसकी अखिल भारतीय छवि प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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