राजभवन और सरकार के बीच खींचतान पर राज्यपाल बोले- मैंने कभी मना नहीं किया, अब नियमों के तहत सत्र बुलाया तो मंजूरी दी https://ift.tt/2ExGzg1
विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राजभवन व सरकार के बीच 7 दिन टकराव की स्थिति रही। राज्यपाल कलराज मिश्र कांग्रेस के निशाने पर रहे। राजभवन में धरना-प्रदर्शन किया तो सीएम अशोक गहलोत सहित अन्य नेताओं ने उन पर टिप्पणी की। केंद्र सरकार व भाजपा के दबाव में काम करने, सत्र के प्रस्ताव लौटाने सहित अन्य ज्वलंत मुद्दों के बीच पहली बार राज्यपाल मिश्र ने भास्कर से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश...
सवालः राज्य सरकार ने 31 जुलाई से सत्र बुलाए जाने को लेकर तीन बार प्रस्ताव भेजा, आखिर आपने अनुमति क्यों नहीं दी?
जवाबः मैंने कभी मना नहीं किया। संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत कैबिनेट की सलाह पर राज्यपाल के रूप में मेरे संवैधानिक दायित्व हैं। सरकार ने नियम के अनुसार प्रस्ताव नहीं भेजे। इस कारण हर बार वापस लौटाए गए।
सवालः आपने अब सरकार का प्रस्ताव कैसे मंजूर कर लिया?
जवाबः नियम के अनुसार प्रस्ताव मिलते ही 14 अगस्त से सत्र की मंजूरी दी है। चूंकि, कोरोना का प्रकोप चरम पर है। एक माह में एक्टिव केस तीन गुना से अधिक बढ़ गए। ऐसे में बिना कारण सत्र बुलाकर 1200 से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में क्यों डाला जाए? इसलिए सरकार से 3 बिंदुओं पर कार्यवाही की अपेक्षा की जा रही थी।
सवालः क्या संवैधानिक तौर पर सत्र बुलाने के लिए अनुमति की जरूरत है या सरकार खुद के भी स्तर पर सत्र बुला सकती है?
जवाबः संविधान के तहत कैबिनेट की सलाह पर राज्यपाल ही सत्र बुला सकते हैं। इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सत्र के लिए वारंट राज्यपाल से ही निकलता है।
सवालः आरोप लग रहा है कि आप केंद्र और भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं। सच क्या है?
जवाबः आरोप निराधार है। मेरे द्वारा संविधान के प्रावधानों और सुसंगत नियमावली के तहत कार्य किया जा रहा है।
सवालः आपकी 1995 की एक तस्वीर वायरल हो रही है। उस समय आप राजभवन में विधायकों के साथ धरने पर हैं। क्या व्यक्ति की भूमिका बदलने के साथ चीजें बदल जाती हैं?
जवाबः 1995 में बसपा नेता मायावती पर मीराबाई गेस्ट हाउस में तत्कालीन सीएम की शह पर कुछ आपराधिक तत्वों ने हमला किया। उस समय मैं उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष था। मायावती को न्याय दिलाने के लिए शांतिपूर्वक, मर्यादित रूप में हम तात्कालिक राज्यपाल मोतीलाल वोरा से निवेदन के लिए राजभवन के बाहर एकत्रित हुए थे।
जहां तक चीजें बदलने का प्रश्न है तो मैंने राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर विधायकों को ससम्मान राजभवन में प्रवेश दिया, पर उन्होंने नारेबाजी की, जो अमर्यादित था।
सवालः पहले सीएम ने कहा कि जनता राजभवन का घेराव करेगी तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी, फिर विधायकों ने राजभवन में धरना-प्रदर्शन किया? इसे आपने किस रूप में लिया?
जवाबः किसी भी राज्य के सीएम के तौर पर इस तरह का बयान देना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे मैं आहत हुआ, इसलिए मैंने उन्हें पत्र भी भेजा।
सवालः राजस्थान में कांग्रेस के विधायक जिस तरह से बाड़ेबंदी में फंसे हैं? इसे लेकर क्या आपने केंद्रीय गृह मंत्रालय को कोई रिपोर्ट भेजी है?
जवाबः केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजनी है या नहीं, यह सार्वजनिक विषय नहीं है।
सवालः राजस्थान में मौजूदा सियासी संकट को आप किस तरह से देख रहे हैं?
जवाबः प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। इससे आम आदमी के हित प्रभावित होते हैं।
सवालः इस टकराव का राज्यपाल और सीएम के बीच संबंधों पर कुछ असर पड़ेगा?
जवाबः टकराव जैसी कोई बात नहीं है। अशोक गहलोत जी से मेरे संबंध मधुर हैं। वे थोड़े समय के अंतराल पर राजभवन आते रहते हैं। मेरा उनके प्रति स्नेह है।
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