उत्तर बिहार के 15 लाख लोग बाढ़ की चपेट में, पिछले 4 साल में 970 से ज्यादा लोगों की मौत; एक्सपर्ट सरकार की गलत नीतियों को ठहराते हैं जिम्मेदार https://ift.tt/3g6j0bP
कोरोना का कहर झेल रहा बिहार एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है। वैसे तो बिहार के लिए बाढ़ कोई नई चीज नहीं है। अमूमन हर साल बिहार को बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। यह सालों से चली आ रही बेहद दुखदाई परंपरा है जिसको लेकर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है। सरकार हर साल दावे करती है और हर साल बाढ़ उन तमाम दावों को बहा ले जाती है।
पिछले साल भी बिहार में बाढ़ आफत बनकर आई थी। करीब 139 लोगों की मौत हुई थी। राज्य के 17 जिलों के करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी। तब तो पटना भी जलमग्न हो गया था। सैकड़ों घरों में पानी घुस गया था। लाखों लोग फंस गए थे। कई दुकानें, अस्पताल, बाजार, शोरूम सब जलमग्न हो गए थे। 23 जुलाई 2019 को लोकसभा में गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, 2016 से 2019 के बीच बाढ़ से बिहार में 970 लोगों की जान गई थी।
पिछले दो दशक की बात करें तो बिहार के लिए 2017, 2008, 2007, 2004 और 2002 सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाले साल रहे। 2017 में 514 लोगों की जान गई थी। 2008 में 18 जिले और करीब 50 लाख लोग बाढ़ की चपेट में थे। 258 लोगों की मौत हुई थी। 2007 में 22 जिलों में बाढ़ ने कहर बरपाया था, 2.4 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और 1287 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।
राज्य के 11 जिले प्रभावित हैं, जिसका असर करीब 15 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी पर पड़ा है। कम से कम 625 पंचायतों में पानी भर गया है। वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी तबाह हो गई है। अभी तक 8 लोगों की मौत हुई है। पश्चिम चम्पारण में 4 और दरभंगा में चार लोगों की मौत हुई है।
आखिर हर साल बाढ़ क्यों आती है
बिहार में बाढ़ और नदियों पर लंबे समय से काम कर रहे प्रोफेसर दिनेश कुमार मिश्रा, बाढ़ को लेकर एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। वे बाढ़ को आपदा नहीं मानते हैं, वे बताते हैं कि उत्तर बिहार के हिस्से हिमालय से करीब हैं और वहां से निकलने वाली नदियों की वजह से पानी आना स्वाभाविक है, यह नेचुरल प्रॉसेस है। पहले गांव में पानी आता था और चला जाता था, गांव के बुजुर्ग पानी से डरते नहीं थे, उन्हें पता होता था कि हमें एक-दो महीने तकलीफ होगी फिर पानी वापस चला जाएगा। तब उतना नुकसान नहीं होता था, जितना आज होता है। इसके लिए सरकार का कुप्रबंधन और गलत नीतियां जिम्मेदार हैं।
वे कहते हैं कि सरकार ने नदियों के बहाव को रोकने के लिए बांधों का निर्माण तो कर दिया, लेकिन इस बात को लेकर कोई नीति नहीं बन पाई कि जमा हुए पानी का क्या होगा, कितने दिन पानी जमा रहेगा। पानी का बहाव रुकने से मिट्टी भी बांध के दूसरी तरफ ही रह जाती है, इससे नदी पर मिट्टी की परत बढ़ती जाती है। इससे नदियों का जलस्तर बढ़ते जाता है और पानी या तो बांध के ऊपर से निकलता है या तोड़ देता है, जिससे गांवों में पानी भर जाता है।
वे कहते हैं कि तटबंध, बांध, बैराज बनाकर नदियों के दायरे को सीमित कर दिया गया, जिससे फायदे के बजाए केवल नुकसान हुआ। तटबंधों के बनने से नदियों व लोगों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी गयी। बाढ़ को रोकने के लिए बने तटबंधों के कारण नदियों में गाद इकट्ठा होने लगी, जिससे नदी का लेवल ऊपर उठता गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जो पानी समुद्र में जाना चाहिए, वह पानी गांवों में जाता है और बाढ़ का रूप लेता है।
दिनेश कुमार बताते हैं कि बाढ़ के पानी के साथ जो मिट्टी बहकर आती है वो खेती के लिए फायदेमंद होती है, इससे उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। अगर बांध नहीं होते तो ये मिट्टी खेती के लिए उपयोगी होती।
वे कहते हैं कि सरकार तटबंध बनाकर बाढ़ को रोकने का दावा करती है, कोई कहता है कि 30 साल बाढ़ नहीं आएगी तो कोई कहता है कि 20 साल बाढ़ नहीं आएगी, लेकिन उसके बाद क्या होगा? यह कोई नहीं बताता है। यह कोई स्थाई तरीका नहीं है, हम बांध तो बना सकते हैं, लेकिन नदियों को अपने वश में नहीं कर सकते हैं, वो हमारे हिसाब से नहीं बहेंगी।
वे बताते हैं कि 2002 में नदियों को जोड़ने की बात कही गई, दावा किया गया कि इससे बाढ़ के प्रभाव को रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन 17 साल बाद भी अभी तक एक भी नदी को नहीं जोड़ा गया। कुछ लोग कहते हैं कि नदियों की खुदाई करके और मिट्टी निकालकर बाढ़ को रोका जा सकता है, लेकिन यह संभव नहीं है।
वे बताते हैं कि एक रिसर्च के मुताबिक, हर साल नदी पांच इंच ऊपर उठती है, अगर कोई सिर्फ 33 किमी एरिया की मिट्टी भी निकालना चाहे तो रोज 37 हजार 500 ट्रक मिट्टी निकालना होगा, जो व्यवहारिक नहीं लगता है। अगर मिट्टी निकाली भी जाती है तो इस मिट्टी का क्या होगा, कहां डाली जाएगी, यह भी पता नहीं है।
दिनेश कुमार कहते हैं कि इंसानों के लिए तो ऊपर से खाने के पैकेट्स गिराए जाते हैं, राहत सामग्री पहुंचाई जाती है, लेकिन जानवरों के लिए कोई कुछ पहल नहीं करता है, हर साल बड़ी संख्या में जानवर भी बाढ़ का कहर झेलते हैं।
नेपाल ने पानी छोड़ दिया, यह कहना ठीक नहीं है
नेपाल के पानी छोड़ने को लेकर वे कहते हैं कि बिहार में बाढ़ के लिए नेपाल को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है। अभी दो बैराज हैं, एक कोसी पर और दूसरा गंडक के ऊपर। इन दोनों पर कंट्रोल बिहार सरकार का है। इसलिए यह कहना कि नेपाल पानी छोड़ देता है, सही नहीं है। नेपाल के पास ऐसा कोई साधन नहीं है कि वह पानी को रोक कर रखे।
समय रहते बचाव और तैयारी ही कारगर उपाय है
दिनेश कुमार कहते हैं कि बाढ़ से बचने का एक ही तरीका है बचाव और तैयारी। समय रहते अगर लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा सके, उनके लिए वहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था की जा सके तो ही नुकसान से बचा जा सकता है। लेकिन, इसको लेकर कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है।
वे कहते हैं कि सरकारी मुलाजिम और आम जनता के बीच संवाद नहीं हो पा रहा है, उन्हें सही जानकारी और सूचना नहीं मिल पा रही है। इससे गांव वालों को बचाव और तैयारी का समय नहीं मिल रहा है। इसको लेकर काम करने की जरूरत है।
बिहार में कई नदियां अपने उफान पर हैं। बागमती, बुढ़ी गंडक, कमलाबलान, लालबकैया, अधवारा, खिरोई, महानंदा और घाघरा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। लोगों के घरों में पानी घुस गया है, सड़कों पर पानी भर गया है। सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बच्चों को हो रही है। बाढ़ में फंसने की वजह से खाने-पीने की भी आफत हो गई है।
पूर्वी चम्पारण के कोटवा प्रखंड में भोपतपुर बझिया बाजार के बीच सोमवती नदी का पुल रविवार को बह गया। इससे गांव के लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। ये पुल लगभग दो दशक पुराना था।
गंडक नदी के उफान के चलते पश्चिम चंपारण जिले का हाल बेहाल हो गया है। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक, इस जिले में करीब 1.43 लाख लोग बाढ़ की चपेट में हैं। इसमें से 5 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। एनडीआरएफ की टीम लोगों की मदद में जुटी है।
शनिवार को गोपालगंज जिले के बैकुंठपुर इलाके में सारण बांध दो जगह से टूट गया। इससे सारण जिले के तरैया, मशरख और पानापुर में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। गोपालगंज के बैकुंठपुर में दो जगह जमींदारी बांध टूटा है। इससे पहले शुक्रवार को गोपालगंज में गंडक नदी पर बना सारण बांध टूट गया था।
पूर्वी चंपारण जिले में रविवार को एक महिला ने नाव पर बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद एनडीआरएफ की मदद से उसे पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। मां और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं। जानकारी के मुताबिक, महिला को नाव पर ही लेबर पेन शुरू हो गया। उसके बाद एनडीआरएफ और आशा कार्यकर्ता की टीम महिला की मदद के लिए पहुंची और सुरक्षित प्रसव कराया।
17 जिलों में अलर्ट जारी
आपदा प्रबंधन विभाग ने 17 जिलों के डीएम को अलर्ट भेजा है। ये जिले हैं- किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, मधुबनी, सीतामढ़ी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, सहरसा, मधेपुरा, समस्तीपुर और खगड़िया।
अब तक राज्य में करीब 94 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। इनमें से 14 हजार लोग राहत कैंप में ठहरे हुए हैं। अभी तक कुल 26 राहत कैंप बनाए गए हैं। इसके साथ ही 463 कम्युनिटी किचन भी बनाया गया है, जहां बाढ़ में फंसे लोगों के लिए खाना तैयार किया जा रहा है। हालांकि, कई लोगों का कहना है कि कम्युनिटी किचन सेंटर गांव से दूर बनाए गए हैं। बाढ़ में फंसे होने और सड़कों पर कमर से ज्यादा पानी भरे होने की वजह से वे वहां नहीं पहुंच पा रहे हैं।
एयर फोर्स के तीन हेलिकॉप्टर बाढ़ पीड़ितों के बीच खाना गिरा रहे हैं। दो हेलिकॉप्टर दरभंगा और मोतिहारी के बीच राहत कार्य चला रहे हैं। एक हेलिकॉप्टर पटना से गोपालगंज में राहत सामग्री की एयर ड्रॉपिंग कर रहा है।
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