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AI से मिल रही वैक्सीन बनाने में मदद, फेस रिकॉग्निशन कोरोना मरीज पर नजर रख रहा, रोबोट कर रहे देखभाल और साफ-सफाई

AI से मिल रही वैक्सीन बनाने में मदद, फेस रिकॉग्निशन कोरोना मरीज पर नजर रख रहा, रोबोट कर रहे देखभाल और साफ-सफाई

कोरोनावायरस के चलते जब पूरी दुनिया डर के साये में जी रही है, उस वक्त में टेक्नोलॉजी हमारी सबसेबड़ीमददगार बन रही है। टेक्नोलॉजी की बदौलत हम ना सिर्फ कोरोना के खिलाफ तेजी से रिस्पांड कर पा रहे हैं, बल्कि सरकारें भी तकनीक की मदद से लोगों को भरोसा दे रही हैं।

टेक एक्सपर्ट बालेंदु दाधीच का मानना है कि टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी मदद तो यही है। एआई (AI), एनालिटिक्स, क्लाउड, मोबाइल, सोशल प्लेटफॉर्म्स कोरोना से इस लड़ाई में टेक्नोलॉजी के पांच सबसे मजबूत वॉरियर के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

वहीं, टेक गुरु अभिषेक तैलंग एआई, रोबोटिक्स जैसी टेक्नोलॉजी के साथ टेक फ्यूजन के महत्व की भी बात करते हैं। चीन में मरीजों के देखभाल के लिए रोबोट को लगाया गया है जो अस्पतालों के आइसोलेशन वॉर्ड्स में दवाइयां और खाना देने का काम कर रहे हैं। मरीजों के मेडिकल वेस्ट और बेड शीट्स लेने का काम कर रहे हैं।

`लिटिल पीनट्स` नाम का एक रोबोट तो होटलों में क्वारैंटाइन किए गए लोगों तक खाना पहुंचाने का काम कर रहा है। अमेरिका में `विसी` नाम का रोबोट मेडिकल टीम और मरीज के बीच कॉर्डिनेशन का काम कर रहा है। इसी तरह कई चैटबोट्स यात्रियों को लेटेस्ट ट्रेवल प्रोसिजर की जानकारी दे रहे हैं।


कोरोना से लड़ने में टेक्नोलॉजी कैसे कर रही हमारी मदद?

  • आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस-
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बालेंदु दाधीच और अभिषेक तैलंग दोनों का ही मानना है कि कोरोना से लड़ने में टेक्नोलॉजी का मुख्य योगदान प्रोसेस को रफ्तार देने में है। इससे स्पीड बढ़ी है रिस्पांस टाइम कम हो गया है। गूगल डीप माइंड ने `अल्फा फोल्ड` सिस्टम बनाया है,जो प्रोटीन के जेनेटिकसीक्वेंस का 3 डी स्ट्रक्चर प्रिडिक्ट करने में सक्षम है।

इस स्ट्रक्चर को समझने से रिसर्च करने वालों को वैक्सीन के लिए कंपोनेंट खोजने में मदद मिल रही है।इसी तरह रिलेवेंट रिसर्च पेपर को एक जगह लाने में एआई बहुत मददगार बन रही हैं। एलन इंस्टीट्यूट और गूगल डीप माइंड ने इस तरह का टूल भी बनाया है जो रिसर्चर को एक-दूसरे का रिजल्ट और डाटा आसानी से शेयर कर रहा है।

यहां क्लाउड कंप्यूटिंग की इंपॉर्टेंट भूमिका है, जो सभी नतीजों को बहुत कम समय में एक-दूसरे को मुहैया करा रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और वहां के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने बायोलॉजी टेक्नीक की मदद से वायरस के स्पाइक प्रोटीन का 3 डी मैप बनाया है। जिससे वायरस के इंफेक्शन की प्रक्रिया को समझा जा सकता है। यह प्रोटीन ही आदमी के शरीर जाकर उसकी सेल को संक्रमित करने के लिए जिम्मेदार है।

इससे वैक्सीन के कंपोनेंट बनाने में मदद मिल रही है। टेक्नोलॉजी के भविष्य में जबरदस्त परिवर्तन लाने वाली एआई तकनीक में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा, बायजूजैसी कंपनियां भारी इंवेस्ट कर रही हैं।


  • फ्यूजन टेक्नोलॉजी से ब्रीदिंग उपकरण-
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अभिषेक तैलंग कहते हैं कि किस तरह से टेक्नोलॉजी फ्यूजन भी कोरोना से लड़ने में हेल्प कर रहा है। मर्सिडीज फॉर्मूला वन और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंजीनियरों ने मिलकर फॉर्मूला वन कारों में उपयोग की जाने वाली टेक्नोलॉजी की मदद से वेंटिलेटर जैसा सीपीएपी उपकरण बनाया है, जो सीधे मरीज के फेफडों में ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकता है।

यह उपकरण पिछले उपकरणों से 70 फीसदी कम ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर काफी मात्रा में ऑक्सीजन की बचत भी करता है। वेल्स के ग्लेनविली अस्पताल के डॉ. रे थॉमस ने नए तरह का एक वेंटिलेटर बनाया है जो ना सिर्फ मरीजों को ऑक्सीजन देने का काम करता है, बल्कि कमरे से संक्रमित पर्टिकल को हटाकर मरीज को फ्रेश हवा देने का काम भी करता है। इस तरह के इनोवेशन पूरी दुनिया में हो रहे हैं और इनका उपयोग शुरू हो चुका है।


  • कॉन्टैक्टलेस ऑपरेशंस-
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सेल्फ ड्राइविंग कार, ड्रोन और रोबोट्स उन सभी जगहों पर मददगार हैं, जहां ह्यूमन कॉन्टैक्ट से बचना है। संक्रमित लोगों या मरीजों को यहां से वहां ले जाने में इस तरह कीकार बहुत मदद कर सकती है। अभिषेक तैलंग बताते हैं कि रोबोट्स मरीजों को खाना देने, उनकी स्वाबऔर अल्ट्रासाउंड टेस्टिंग, अस्पतालों की साफ-सफाई में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा रोबोट जटिल सर्जरी का काम भी कर रहे हैं।

हमारे देश की बात करें तो कई अस्पतालों में रोबोट असिस्टेड सर्जरी हो रही हैं। इसके अलावा ड्रोन की सहायता से फूड डिलीवरी और मेडिसिन को क्वारैन्टाइन किए गए लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। अपोलो कंपनी और चीन की बायजूने इस तरह के काम के लिए `नियोलिक्स` नाम का स्टार्टअप भी बनाया है, जो सेल्फड्राइविंग व्हीकल बनाने का काम करेगा।

चीन की सबसे बड़ी कूरियर कंपनी एसएफ ने तो वुहान के अस्पतालों में मेडिकल सप्लाई के लिए बड़ी संख्या में ड्रोन का ही इस्तेमाल किया था। इसी तरह अमेरिका की एमआईटी ने एक टेक्नोलॉजी बनाई है जो मरीजों की हेल्थ को वायरलेस सिग्नल की मदद से मॉनिटर कर सकती है। इन सिग्नल को दूर बैठे डॉक्टर को भेजने का काम कर सकती है।

  • फोन से होगी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग-
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गूगल ने एपल के साथ मिलकर इस तरह की टेक्नोलॉजी बना ली है जो कोरोना मरीज के बारे में आपको जानकारी देगी। यह API एक जटिल BLB BEACON प्रोटोकॉल सिस्टम पर काम करती है जो डिफॉल्ट सर्विस के रूप में आपके फोन में रहेगी।

अभिषेक तैलंग का कहना है कि एक्सपोजर नोटिफिकेशन` नाम का यह बहुत उपयोगी API (एप्लीकेशन प्रोग्राम इंटरफेस) है, जल्द ही यह टेक्नोलॉजी आइओएस(iOS) और एंड्रोइड(Android) स्मार्ट फोन पर उपलब्ध होगी।

इसमें ब्लूटूथ की मदद से दो फोन कनैक्ट होते हैं। सहमति से डाटा शेयर होता है,जिससे इंफेक्टेड व्यक्ति के बारे में संपर्क में आए व्यक्ति को इंफॉर्मेशन मिल जाती है। हालांकि, अभी यह शुरुआती स्थिति में है, जिसका ट्रायल लगभग 22 देशों में चल रहा है। इनके नतीजे आते ही यह API देशों की पब्लिक हेल्थ एजेंसियां को सौंपी जाएगी, जिसकी मदद से वे संक्रमित व्यक्ति के कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का काम आसानी से कर पाएंगी।


  • सोशल मीडिया से ताकत और जागरूकता-
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माइक्रोसॉफ्ट ने एक इंटरएक्टिव मैप बनाया है जो आपको कोरोना के बारे में सही-सही जानकारी देगा। इसी तरह लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक ने डब्ल्यूएचओ के साथ कोरोना के बारे में सही तथ्य और जानकारी देने के लिए हाथ मिलाया है। डब्ल्यूएचओ की लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान यूजर यहां उनसे सवाल भी पूछ सकता है।

बालेन्दु कहते हैं कि भले ही फेक न्यूज का सबसे बड़ा सोर्स सोशल मीडिया हो, लेकिन इसी ने लोगों को अवेयर करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। उन्हें इम्पावर करने में, लोगों के बीच कम्युनिकेशन को बनाकर उन्हें जोड़े रखने में सोशल मीडिया का रोल अहम है। इसके बिना लॉकडाउन में आइसोलेशन की फीलिंग से निपटना मुश्किल हो जाता।


  • ट्रेकिंग के लिए फेशियल रिकॉग्निशन-
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मरीजों के लिए फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी बनाई गई है। जो मास्क के बावजूद भी मरीजों के चेहरों को पहचान सकती है। इसी तरह यह टेक्नोलॉजी सीसीटीवी कैमरे के साथ काम करके क्वारैंटाइन किए गए लोगों पर भी नजर रखकर संबंधित एजेंसियों को जानकारी दे सकती है, जो क्वारैंटाइन पीरियड का पालन सही तरीके से नहीं कर रहे हैं।

दूसरे लोगों को इन संक्रमितों के बारे में जानकारी देने का काम कर सकती है।अस्पतालों में सीमित रूप से तो इसका प्रयोग शुरू हो चुका है, एक्सपर्ट्स का मानना है कि जल्द ही यह टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने में उपयोगी में आती दिखाई देने लगेगी।


  • टेली मेडिसन से रिमोट एरिया में मदद-
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अमेरिका के शिकागो स्थित रश यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर ने एक वर्चुअल मेडिकल लाइन सेटअप की है जो कोरोना पेशेंट्स की जांच में मदद कर रही है। इस टेक्नोलॉजी की सहायता से वहां रिमोट एरिया में रहने वाले मरीजों की जांच में काफी मदद मिल रही है।


  • सरल और यूजफुल डिवाइस का इनोवेशन-
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बालेंदु बताते हैं कि कोरोना जैसी बीमारी के खिलाफ सिंपल, लेकिन बहुत उपयोगी डिवाइस चाहिए हैं, जो लोगों को सुरक्षित रखे, इलाज में मदद करें। कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि कोरोनावायरस कई सर्फेसपर घंटों से लेकर कई दिनों तक जिंदा रह सकता है।

विशेषकर स्टील की सतह पर तो वायरस तीन दिन तक जीवित रहता है। दरवाजे के हैंडल सबसे कॉमन जगह हैं, जिसे दिन में कई बात टच किया जाता है। यहां संक्रमण का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। डोर ओपनर्स बहुत छोटा सा इनवेंशन है,जो संक्रमण रोकने में बहुत मददगार है। यह बहुत आसानी से दरवाजे को खोल सकता है। इसे आसानी से सैनिटाइज किया जा सकता है।

लंदन के डिजाइनर स्टीव ब्रुक्स ने इस तरह का एक डोर ओपनर बनाया है, जिसे `हाइजीन हुक` नाम दिया है। यह इतना छोटा है कि इसे जेब में रखा जा सकता है। इसकी सहायता से किसी भी दरवाजे को खोला जा सकता है। इसे आसानी से सैनिटाइज भी किया जा सकता है।

  • यूवी स्टेरेलाइजर वायरलेस चार्जर-
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यह डिवाइस आपके मोबाइल, चार्जर, घड़ियों, ईयरफोन आदि की सर्फेससे खतरनाक जर्म्स को हटाने का काम करती हैं। यह डिवाइस मार्केट में आ चुकी है।


वेजीटेबल एंड फूड डिसइंफेक्टेंटः

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इस टेक्नोलॉजी की मदद से आप सब्जियों और फलों में खतरनाक पेस्टीसाइड हटा सकते हैं। कुछ कंपनियों ने इस तरह के डिवाइस का प्रोड्क्शन शुरू किया है। यह ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।



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