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घाटी को 36 हजार करोड़ का नुकसान, सेब के बाग, शिकारे और जेवर बेचकर रोजी-रोटी जुटाने की कोशिश

घाटी को 36 हजार करोड़ का नुकसान, सेब के बाग, शिकारे और जेवर बेचकर रोजी-रोटी जुटाने की कोशिश

कश्मीर घाटी पिछले 11 महीने से डबल लॉकडाउन झेल रही है। पिछले साल अगस्त में धारा 370 हटाने के ठीक पहले यहां एहतियातन लॉकडाउन लगा दिया गया था। सर्दियों में महीने भर के लिए लॉकडाउन खुला भी तो मार्च में कोरोना के कारण फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ा।

इन 11 महीनों में कश्मीर घाटी ने पिछले तीन दशक मेंसबसे बड़ा आर्थिक नुकसान झेला है। सुरक्षा के चलते लगने वाले लॉकडाउन में कश्मीरियों ने खुद को हालातके मुताबिक ढाल लिया था। उसका आर्थिक स्थिति पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। लेकिन, इस बार मार सीधे जेब पर पड़ी है।

पर्यटन, हॉर्टिकल्चर, पश्मिना-हैंडीक्राफ्ट और ड्राय फ्रूट की बदौलत कश्मीर को आमदनी हासिल होती है। टूरिस्ट सीजन भी शुरू हो चुका है। लेकिन, कोरोना के चलते पर्यटकों से कश्मीर आने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस साल पश्मीना बुनाई का काम बंद है, केसर पर भी कोरोना का असर हुआ है।सेब और अखरोट को लॉकडाउन से ज्यादा मौसम से नुकसान हुआ है।

डल लेक पर 900 से अधिक हाउस बोट बने हैं। लॉकडाउन के कारण सभी पूरी तरह से खाली पड़े हैं।

डबल लॉकडाउन में 36 हजार करोड़ का घाटा

द कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने डबल लॉकडाउन का एनालिसिस दो फेज में किया है। अगस्त से लेकर दिसंबर तक 120 दिन घाटी में एक दर्जन से ज्यादा सेक्टर में करीब 18 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। यानी हर दिन करीब 120 करोड़ का घाटा कश्मीर के कारोबार को हुआ है। यही नहीं पांच लाख लोगों ने इस दौरान नौकरी भी गंवाई हैं।

कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के शेख अहमद के मुताबिक इस साल जनवरी से लेकर जून तक करीब 18 हजार करोड़ रुपए का नुकसान और हुआ है। यानी डबल लॉकडाउन में करीब 36 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा नुकसान कश्मीर घाटी में टूरिज्म, हॉर्टिकल्चर, टांसपोर्ट, हैंडीक्राफ्ट, एजुकेशन समेत एक दर्जन सेक्टर को हुआ है।

अहमद कहते हैं, कारोना के कारणकश्मीर के ट्रेड पर भी असर पड़ेगा। ऐसे हालात का सामना शायद पहली बार घाटी झेल रही है। यहां पर्यटन बढ़ने और दूसरे प्रदेशों में लॉकडाउन की बंदिशें कम होने से ही स्थिति सामान्य हो सकती है।लेकिन, इसमें कम से कम पांच साल तो लग ही जाएंगे।

इस समय डल लेक सूनी है, शिकारे भी नहीं चल रहे हैं, क्योंकि यहां पर्यटक ही नहीं आ रहे हैं।

परिवार चलाने के लिए 500 शिकारा वालों ने अपनी बोट बेच दी
ऑल जे एंड के टैक्सी शिकाराएसोसिएशन के प्रेसिडेंट वली मोहम्मद के मुताबिक डल झील में अभी 4880 शिकारा और 910 हाउस बोट हैं। पिछले 11 महीने में यहां मुश्किल से 20 दिन ही शिकारे चल पाए हैं। यही वजह है कि 500 शिकारा वालों ने अपनी बोट बेच दी।

उनके लिए मेंटेंनेंस का खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा था। एक शिकारा की कीमत करीब तीन लाख रुपए तक होती है।लेकिन, मजबूरी के चलते उसे 50 से 80 हजार रुपए में बेच दिया। टूरिस्ट सीजन में जब पर्यटक आते हैं तो एक शिकारे से तीन लाख रुपए तक कमाई हो जाती है। लेकिन, इस बार 20 हजार रुपए भी नहीं हो पाई।

कई शिकारे वाले ऐसे भी हैं जिन्होंने शिकारा तो नहीं बेचालेकिन अपनी पत्नी के जेवर बेच दिए। यही हाल हाउस बोट वालों का है। एक अच्छे सीजन में उनकी कमाई भी 6लाख रुपए तक हो जाती थी। लेकिन, इस बार 50 हजार रुपए से भी कम है। एक बोट हाउस के मेंटेनेंस का खर्च 70 हजार रुपए से ज्यादा आता है।

लॉकडाउन के कारण मंडी में फलों और सब्जियों की डिमांड कम हो गई है।

सेब का उत्पादन कमहुआ, बाग बेचने की तैयारी में किसान

दिल्ली कीआजाद मंडी के बादश्रीनगर की पारिम्पोरामंडी का नाम एशिया में दूसरे पायदान पर आता है। यहां के न्यू कश्मीर फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन बट ने बताया कि कश्मीर में प्लम, डबल चेरी और सेब की पैदावार होती है। लेकिन, इस बार तीनों में ही बहुत घाटा हुआ है। डबल चेरी की पैदावार तीन लाख किलो होती थी।

मुंबई, बैंगलोर और तमिलनाडु में इसकी डिमांड सबसे ज्यादा थी। लॉकडाउन के चलते इस बार चेरी की डिमांड कम है। हर साल 25 टन चेरी मुंबई जाती थी। लेकिन, इस बार सिर्फ पांच टन चेरी की डिमांड आई। चेरी से अलग-अलग प्रोडक्ट्स बनाने वाली श्रीनगर में दो दर्जन से ज्यादा कंपनियां हैं। लेकिन, डबल लॉकडाउन के चलते यहां सिर्फ तीन फैक्ट्रियांखुली हैं। जिसमेंसिर्फ 25 फीसदीवर्कर ही काम कर रहे हैं।

जम्मू- कश्मीर में धीरे-धीरे मंडियां खुल रही हैं लेकिन अभी ग्राहक ज्यादा नहीं पहुंच रहे हैं।

नवंबर में ओलागिरनेऔर गलत दवाओं के इस्तेमाल के कारण सेब की करीब 40% फसल खराब हो गई। 10 जुलाई से सेब मंडी में आने शुरूहो जाते हैं। इस बार लोगों को 30 से 40 फीसदी महंगा सेब मिलने की आशंका है। सेब किसानों की फसल इस कदर खराब हुई कि वो बाग बेचना चाहते हैं। लेकिन, उन्हें खरीददार नहीं मिल रहे हैं। पहले मंडी में 270 ट्रेडर हुआ करते थे। अभी करीब 120 ट्रेडर के पास कोई काम ही नहीं बचा है।

इस साल नई पश्मीना शॉल नहीं बुनी जाएंगी, पुरानी ही बेचेंगे
कश्मीरी फैंसी क्राफ्ट्स के सेक्रेटरी मुश्ताक अहमद बट ने बताया कि इस साल नई पश्मीना शॉल, फिरन, पुंचू का काम नहीं होगा। जो पुराना माल होगा वही बेचेंगे। 11 महीने से यहां लॉकडाउन है, इस कारण कई लोगो के पास पुराना माल भी नहीं बिकाहोगा। बडगाम, श्रीनगर, गांदरबल इन्हें बनाने का काम होता है।लगातार लॉकडाउन से कच्चा माल खरीदने के लिए कारिगरों के पास पैसे नहीं बचे है और अगर कोई खरीद भी लेता है तो वह उसे बेचने बाहर नहीं जा सकेगा।

यह शॉल बनाने वाली फैक्ट्री श्रीनगर के गाेजवारा इलाके में है। इस समय में यहां पश्मीना शॉल व गर्म कपड़े बनने का शुरु हो जाता था, लेकिन इस बार काम पूरी तरह से बंद है।

कश्मीरी केसर की फसल अच्छी, लेकिन ईरानी केसर ने कारोबार खत्म किया

जाफरान एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अब्दुल मजीद कहते हैं इस बार सही समय पर बरसात होने से केसर की फसल अच्छी होने की उम्मीद है। पिछले साल 17 टन केसर हुआ था। जिसकी कीमत 250 करोड़ रुपए से ज्यादा थी। इस सीजन में 20 टन से ज्यादा केसर हो सकता है। इसलिए उम्मीद है कि 300 करोड़रुपए से ज्यादा का कारोबार हो सकता है।
ईरान और अमेरिका के तनाव के चलते ईरानी केसर सस्ते में भारत के बाजार में पहुंचा है। इस केसर को कश्मीरी केसर बोलकर बेचा जा रहा है। एक किलो ईरानी केसर की कीमत करीब 50 रुपए होती है। वहीं एक किलो कश्मीरी केसर की कीमत डेढ़ से दो लाख रुपए होती है। गुणवत्ता के लिहाज से कश्मीरी केसर ईरान वाले से कहीं ज्यादा अच्छा होता है।



पिछले 11 महीने के दौरान जम्मू-कश्मीर को डबल लॉकडाउन का सामना करना पड़ा है। पहला अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 हटाने के बाद और दूसरा कोरोना के कारण इस साल लगाना पड़ा।


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